मंगलवार, 17 अगस्त 2010

एक शहरी आम लड़की

मैं कनिका हूॅ । आपने मध्यम वर्ग का नाम तो सुना ही होगा | आप जानतें हैं कि उसके भी दो प्रकार होतें हैं एक "अप्पर मिडल क्लास" और "लोअर मिडल क्लास "| हाँ मैं दूसरी श्रेणी से हूँ |कल हाइड्रोजन गैस वाला गुब्बारा देखा तो सोचा कि मैं भी अपनी इच्छाएं पूरी कर इसी की तरह स्वच्छंद आकाश में विचरण करूं । एक ‘शहरी आम लड़की की यही तो इच्छा होती है। वो करना बहुत कुछ चाहती है, पर कर कुछ नहीं पाती है। एक तरफ तो उसकी इच्छाएं फैशनेबल आकार लेना चाहती हैं वहीं दूसरी तरफ पैसों की कमी ज़रूरतों को भी पूरा नहीं होने देती।जब ये शहरी आम लड़की स्नातक पास कर लेती है तो उसके लिए बिना कहे दो विकल्प रखे जाते हैं या तो वह  शादी करे या नौकरी | क्योंकि यह शहरी आम लड़की  अपनी इच्छाओं को पूरा करना चाहती है इसलिए नौकरी के क्षेत्र में आ जाती है इससे दो फायदें हैं एक तो कुछ पैसे आ जाएँगे दूसरा शादी से भी थोडा टाइम शादी से भी  बच जाएँगे | वैसे ये शहरी लड़की वो है जिसके माँ - बाप उस पर और पैसे खर्च नहीं करना चाहते या यूँ कहें कि उसकी शादी के लिए पैसे बचाना चाहतें हैं | ये आम लड़की वो है जो बसों के धक्के खाती है , जो चलती फिरती नज़रों का "सिर्फ" शिकार बनती है , जो पदना चाहती है लेकिन कहीं उसकी अगले दो सालों में शादी ना हो जाये इसलिए नौकरी करती है | ये वो लड़की है घर में देरी से आने से डरती है क्योंकि उसके घर वाले उसकी बहुत परवाह करते हैं | कहते हैं कि लड़की कि इच्छा एक पानी का बुलबुला है जो बनते ही फूट जाता है लेकिन मुझे लगता है कि यह इच्छा अथाह समुद्र के सामान होती है जिसे कभी किनारा नहीं मिलता | ये वो लड़की है जो इस तरह पदाई - लिखाई जाती है जिससे कि वो एक "मैरिज मैटेरिअल" बन जाती है |ये वो लड़की है जो करना  बहुत कुछ चाहती है पर कर कुछ नहीं पाती है| ये लिखते समय मुझे बस एक ही विज्ञापन याद आता है "वाय ब्वायज शुड हैव ऑल द फन" |

शनिवार, 14 अगस्त 2010

लो आ गया पंद्रह अगस्त

इस वर्ष पन्द्रह अगस्त पर हम भारत की स्वतंत्रता की ६3 वी वर्षगांठ मन रहे हैं | हम सब के लिए यह एक महतवपूर्ण दिन है लेकिन फिर भी देखा जाये तो यह सभी के लिए एक राष्ट्रीय छुट्टी है जो सबके लिए लाग अलग कारणों से महतवपूर्ण है जैसे एक  बच्चे  के लिए इस  दिन का मतलब पतंग उड़ाना और  मस्ती करना हो सकता है लेकिन इस बार १५ अगस्त कुछ खास मज़ेदार नही है| आप सोच रहे होगे की क्यों नहीं है वो इसलिए कि इस बार इस राष्ट्रीय छुट्टी को सन्डे वाले दिन जो आई है| आज कि इस व्यस्त ज़िन्दगी में भारतीयों के लिए ये छुट्टी बहुत मायने रखती है क्योंकि वो इस दिन आराम कर सकते हैं , मस्ती मार सकते हैं , आई बो कटा का खेल , खेल सकते हैं ,अपने मित्रो सम्बन्धियों से मिल सकते हैं  लेकिन इस बार मजा थोडा किरकिरा हो गया क्योकि एक छुट्टी बेकार गई | भारतीय जनता इस दिन पर चिंतन करना भूल जाती है | अपने देश का चिंतन | वो नहीं सोचती कि जो इन्ते वर्षों में हमने क्या खोया और क्या पाया | जो ओस देश का शिक्षित वर्ग है उनसे अपेक्षा है कि वें इस दिन को सिर्फ एक छुट्टी न समझे बल्कि देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझें और कदम उठाएं | एक तरफ  से देखा जाये तो ये रोज़गार का भी अच्छा साधन है इन दिनों हमारे तिरंगे झंडे हर जगह दिखाई दे जाता है जिससे सीजनल एम्प्लौय्मेंट बड जाती है | अभिप्राय ये है कि आज स्वतंत्रता दिवस से किसी को कुछ लेना देना नही है बल्कि एक मौका है किसी के लिए मस्ती का यो किसी के लिए रोज़गार का |