रविवार, 23 जनवरी 2011

इतना आसां न था

सोचा था जिस डगर पर हम
ना रखेंगे कभी कदम
मालूम आज हमें ये हुआ                                                                
कि हम उसी के मालिक हैं
अब जब इस डगर के हम
मालिक बन ही गए
तो सोचा क्यों ना
आगे बढा जाये 
पर इस डगर पर हमारा चलना
इतना आसां ना था
काटों पर चल कर 
फूलों का नर्म लेना 
इतना आसां ना था
इस डगर के हम दो साथी
दुनिया से अलग तो हैं
पर हमारा साथ चलना 
इतना आसां ना था 
सोचा था हर मुश्किल का 
सामना मिल कर करंगे हम
पर प्यार के आगे किसी मुश्किल का आना 
इतना आसां ना था 
   
अंशु


बुधवार, 12 जनवरी 2011

शिक्षा में अधिकार rights in education

शिक्षा में अधिकार

  न्यूईयर के मौके पर 3 साल की चारू की मॉं उसके एडमिशन के लिए काफी परेषान थी । दिल्ली के किसी अच्छे से स्कूल में एडमिशन हो जाए बस नए साल की उनकी यही कामना है। हर नया साल अभिभावकों के लिए एक चिंता बनकर आता है क्योंकि इसी दौरान दिल्ली के अच्छे न होते हुए भी तथाकथित अच्छे स्कूलों में अपने बच्चे के एडमिशन के लिए दौड़ शुरू हो जाती है। जहॉ एक तरफ माता पिता 


बढ़िया से बढ़िया स्कूल ढूंढते हैं  वहीं दूसरी तरफ प्राइवेट स्कूल मनमानी करने से नही चूकते  ।
       गौरतलब है कि दिल्ली के चार स्कूलों को सरकार के निर्देश न मानने के कारण नोटिस भी मिल गया है। लेकिन इसके बावजूद शिक्षा के व्यवसायीकरण पर रोक नही लगी है। सरकार गुर्राती है लेकिन इन स्कूलों का पंजा शैक्षिक समानता को दबोचता नज़र आता है। 1 अप्रैल 2010 को सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम बनाया । पर शिक्षा का अधिकार आज शिक्षा मे अधिकार में बदल गया है।
   
       वही दूसरी ओर सरकारी स्कूल आज गरीबों के स्कूलों में बदल गए है। सरकार के ऊंचे वादों पर अकर्मण्यता कहीं न कहीं प्राइवेट स्कूलों को षिक्षा मे अधिकार जमाने मे मदद कर रही है । भारत मे प्राइमरी शिक्षा का लगातार गिरता स्तर हमारे आने वाले कल के लिए अत्यंत घातक है। जरूरत है कि सरकार इन प्राइवेट स्कूलों के शिक्षा व्यापार पर कड़ी कार्रवाई करे ताकि शिक्षा का अधिकार के मायने साबित हों ।

रविवार, 9 जनवरी 2011

भ्रष्ट हीं होते हैं देशभक्त

बिनायक सेन को उम्रकैद की सज़ा के बाद

हमें बचपन में ही सिखा दिया जाता है कि हमें दूसरों की मदद करनी चाहिए , सदैव सत्य बोलना चाहिए। और साथ ही यह उम्मीद भी की जाती है कि आगे आने वाली पीढ़़ी को भी हम यहीं सिखाएं लेकिन बिनायक सेन ने लोगों की मदद करनी चाही तो सरकार ने उन्हें देशद्रोह करार दिया ।

  बिनायक सेन एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होनें देशसेवा को सबसे ऊपर माना लेकिन सत्तालोलुप सरकार के फैसले ने न सिर्फ लोकतंत्र का मजाक बनाया है बल्कि कहीं न कहीं आगे आने वाली को यह संदेश दिया है कि यदि गरीब और हाशिए पर पहुॅंचे लोगों की मदद की या उनकी समानता के पक्ष में कुछ कहा तो देशद्रोही माने जाओगे । सरकार के इस फैैसले से एक ही बात जो उभर कर सामने आ रही है कि देशद्रोही वही है जो देश का भला चाहता है । और सरकार अपने फैसले के पक्ष में खोखली दलीलें दे रहीं है। इससे पहले भी कितने ही उन लोगो की आवाजों को दबा दिया गया जो मानवाधिकारों के लिए उठी।
   
   इसके साथ ही यह फैसला हमारी न्याय प्रक्रिया पर भी बहुत बड़ा सवालिया निशान लगाता है । एक तरफ वो लोग हैं जिन्होने करोड़ों का घपला किया फिर भी अभी तक स्वतंत्र हैं वहीं दूसरी ओर वे हैं जो समानता , शांति और न्याय के लिए आवाज उठाते है तो उन्हें कुचल दिया जाता है।