शिक्षा में अधिकार
न्यूईयर के मौके पर 3 साल की चारू की मॉं उसके एडमिशन के लिए काफी परेषान थी । दिल्ली के किसी अच्छे से स्कूल में एडमिशन हो जाए बस नए साल की उनकी यही कामना है। हर नया साल अभिभावकों के लिए एक चिंता बनकर आता है क्योंकि इसी दौरान दिल्ली के अच्छे न होते हुए भी तथाकथित अच्छे स्कूलों में अपने बच्चे के एडमिशन के लिए दौड़ शुरू हो जाती है। जहॉ एक तरफ माता पिता
बढ़िया से बढ़िया स्कूल ढूंढते हैं वहीं दूसरी तरफ प्राइवेट स्कूल मनमानी करने से नही चूकते ।
गौरतलब है कि दिल्ली के चार स्कूलों को सरकार के निर्देश न मानने के कारण नोटिस भी मिल गया है। लेकिन इसके बावजूद शिक्षा के व्यवसायीकरण पर रोक नही लगी है। सरकार गुर्राती है लेकिन इन स्कूलों का पंजा “शैक्षिक समानता को दबोचता नज़र आता है। 1 अप्रैल 2010 को सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम बनाया । पर शिक्षा का अधिकार आज शिक्षा मे अधिकार में बदल गया है।
वही दूसरी ओर सरकारी स्कूल आज गरीबों के स्कूलों में बदल गए है। सरकार के ऊंचे वादों पर अकर्मण्यता कहीं न कहीं प्राइवेट स्कूलों को षिक्षा मे अधिकार जमाने मे मदद कर रही है । भारत मे प्राइमरी शिक्षा का लगातार गिरता स्तर हमारे आने वाले कल के लिए अत्यंत घातक है। जरूरत है कि सरकार इन प्राइवेट स्कूलों के शिक्षा व्यापार पर कड़ी कार्रवाई करे ताकि शिक्षा का अधिकार के मायने साबित हों ।