मंगलवार, 31 मई 2011

ईश्वर की दी इस प्रकृति को नमन

ईश्वर की दी इस प्रकृति को
हम करें मिलकर नमन
जिसने व्यथित जीवन को
प्रदान किया चैन अमन                                 

कल -कल करती बहती नदी
सरसराता वायु प्रवाह 
हरे-भरे पौधों और पर्वतों से
सुसज्जित है हमारी धरा


कहीं समुद्र की विशाल धरा
कहीं पगडण्डी का छोटा किनारा
हर जगह हैं रंग बिखरे हुए
उजले हुए , निखरे हुए 
नमन है उसे मिलकर हमारा
जिसने इस धरती को संवारा 


इस सुन्दर प्रकृति को
न लगे किसी की नज़र
बचा लो इसे, संभालो इसे 
यदि करना है जीवन बसर
आओ मिल कर हम 
यही प्रण लें आज
रखेंगे अपनी धरा को संभाल
और बचाएंगे इसकी  लाज         



कौन है ज़िम्मेदार

 कौन है ज़िम्मेदार
भारत की इस दशा का
कही कौन है ज़िम्मेदार 
लोकतंत्र का ढांचा हिलाकर
खोखला किया किसने इसे बार-बार                                                                

 












गरीबी, भूख, अशिक्षा का
श्राप कब मिटेगा 
और कब तक इसकी हालत पर
यह  इन्सान  बद्सलूक हंसेगा
कहाँ गए विकास करने वाले इसके कर्णधार 
लोकतंत्र का ढांचा हिलाकर
खोखला किया किसने इसे बार- बार








कालविजयी हमारा भारत
एक महान शक्ति है
 फिर क्यों घूसखोरी, कालाबाजारी में सबकी भक्ति है?
हर दिन है मचता उत्पात 
हर समय है हाहाकार
 



लोकतंत्र का ढांचा हिलाकर 
खोखला किया किसने इसे बार- बार