सोमवार, 27 अगस्त 2012

भगौड़ी सुनीता


वो बच्ची बार बार हाथ छुड़ाकर भाग जाती | पैरों में  बंधी पायल की आवाज़ सुनकर उसकी माँ उसे पकड़ लाती और फिर उसका हाथ पकड़ कर चलने लगती | सुनीता आज अपने पुराने स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र लेने जा रही है | गोद में नौ महीने की बच्ची और दूसरे से अपनी नटखट बालिका को लेकर वह स्कूल में प्रवेश करती है | सुनीता की शादी तो तभी हो गई थी जब वो छठी कक्षा में पढ़ रही थी, वो भी अपनी उम्र से दोगुने उम्र के लड़के के साथ | शादी के पहले दो साल वो बहुत खुश थी| और एक बच्ची की माँ भी बन गई| पर ना जाने क्यों उसके पति ने ड्रग्स और शराब का सेवन करना शुरू कर दिया |


सुनीता जब स्कूल में थी तो बहुत होशियार थी| सारा दिन खेलना कूदना और बातें करना| पढ़ाई करना उसे पसंद नही था क्योंकि उसे यह शब्दों का मायाजाल समझ ही नही आता था| उसे तो फूँक मार कर चूलेह पर रोटी पकाना, खेतों में घास की कटाई करना खूब भाता था| उसे तो खेतों में किस फसल को किस समय और कितना पानी जरुरत पड़ता है,सब पता था| बाबा के लाख मना करने पर भी वह जिद्द करके उनके साथ मंडी चली जाती और मोल भाव करती | सुनीता घर में सबसे बड़ी थी | जब अपनी शादी की बात उसने सुनी तो घबरा गई | लेकिन माँ ने उसे समझाया कि शादी के बाद उसे वही सब करना होगा जो उसे अच्छा लगता है|
सूखे होठों को पूंछते हुए सुनीता ने अपनी अध्यापिका को नमस्कार कहा | अपनी चाय का झूठा गिलास अध्यापिका ने चौथी में पढ़ रही जुग्गा को धोने के लिए देते हुए सुनीता से पूछा,”तू कैसे आज यहाँ आई ? तेरा मतदाता प्रमाण पत्र बना कि नही ” सुनीता ने सांस भरकर कहा ,“नही, उसी के वास्ते प्रमाण पत्र लेने आई हूँ |” अध्यापिका उसे छोड़कर कुछ कागज़ ढूँढने लगती है |


सुनीता की नज़रें उसी पेड़ पर पड़ती हैं जिसे उसने लगाया था और याद करती है कि कैसे वो तेज़ी से उस नीम के पेड़ पर चढ़ जाती थी और उसमे छुपती थी| आज वो नीम का पेड़ बहुत बड़ा और विशाल हो गया है | पेड़ की इस विशाल काया से उसे डर लगता है |जब सुनीता की शादी तय हुयी तो सुनीता को सभी उसके पति के हष्ट पुष्ट शरीर के लिए खूब चिढाते | लेकिन जब वही पति उसे शराब पी कर मारने लगा तो वह अपनी छह महीने की छोटी बच्ची लेकर भाग आई| सुनीता तो शुरू से ही ऎसी थी| मारना, लड़ना, झगड़ना उसे बिलकुल पसंद नही था |

स्कूल में जब भी उसे मार पड़ती थी तो भी स्कूल से भाग आती तब भी सारे बच्चे उसे “भगौड़ी सुनीता” के नाम से बुलाते थे | फर्क आज बस इतना है की आज पूरा गाँव बुलाता है|

दो पन्नो का फार्म लेकर जब अध्यापिका कार्यालय से बाहर निकली तो पूछा,”तू कहाँ है आजकल दिखती नही ?” गोद में ली बच्ची का नाक पोंछते हुए सुनीता ने कहा,”पास के गाँव में ही हूँ |” अध्यापिका ,”अरे वहां कैसे पड़ गई तू ?” चश्मा उठाकर फार्म का नंबर चेक करते हुए| “दो साल से वहां शादी कर रखी है |” अध्यापिका फार्म रखकर ,”तूने हमे नही बुलाया” अध्यापिका की यह बात सुनकर सुनीता की आंसू से भरी  आखें सूख गई और मुंह खुला रह गया | फिर पूछा ”अब किससे शादी हुयी तेरी?” यह बोल कर अध्यापिका सभी बच्चों को कक्षाकक्ष में बिठाने लगी | सुनीता वो दिन याद करने लगी जब वो अपने दूसरे पति के घर में घुसी | एक औरत खाट पर पड़ी कराह रही थी और उसकी दो बेटियाँ उसके पास पानी लिए खडी थी| सुनीता जानती थी कि वो उसके पति की पहली पत्नी थी| और जैसे ही उसके पास गई तो वह बोली ,”मेरी बेटियों का ध्यान रखना |” सुनीता की नज़रें अपनी बेटी की और दौड़ गई |



सुनीता जानती थी कि जब उसकी माँ से घर में तीसरी बेटी हुयी थी थी तो कितना हंगामा हुआ था| वह सोचने लगी कि लड़का लड़की के भेद ने तो दोनों का अस्तित्व ही मिटा दिया है| आघाती जीवंत भूत में सुप्त सुनीता के कान में जोरों से आवाज़ पड़ती है ,”यह छोरी तेरे दूसरे पति से है?” जवाब आया ,”हाँ मैडम” सुनीता सोच में है कि जो अपना जीवन नही बना पाई वह इन चारों  को कैसे संभालेगी | फार्म देते हुए अध्यापिका बोली,”ये फार्म भरकर परसों दे दियो तो मतदाता प्रमाण पत्र बन जाएगा तेरा ” और इस बार वोट जरूर दियो, मालूम है न कोंन खड़ा हुआ है इस बार सरपंच के चुनाव में? अरे ! अपने हेडमास्टर साहिब | याद है ना तुझे पढाया है उन्होंने | सुनीता अपनी खेल रही नटखट बेटी का हाथ पकड़ कर चली जाती है |

आंकड़ों की शिक्षा

देश के मनाव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल के बयान के अनुसार भारत की उच्च शिक्षा में पिछले चार साल से  नामांकन में 65% का बढ़ावा हुआ है | यह हमारे भारत देश के लिए एक अच्छी बात हो सकती है लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि "नामांकन" बढ़ा है | शिक्षा जैसी आधारभूत जरुरत को भी आंकड़ों और संख्याओं से तोला जाना कहाँ तक ठीक है ? क्या संख्या गुणवत्ता मापने का पैमाना बन सकती है?

शिक्षा को आकड़ों में मापने की स्थिति न केवल उच्च शिक्षा में है बल्कि प्राथमिक शिक्षा में भी यही हाल है | राजस्थान सरकार हर सत्र के आरम्भ में "प्रवेश उत्सव" नाम से बच्चों का नामांकन सरकारी स्कूलों में बढ़ाने का प्रयास करती है | खास बात यह कि यहाँ भी सिर्फ नामांकन पर ही जोर दिया जाता है | सरकार के मानकों  के अनुसार पहली कक्षा में पढने वाले बच्चे की उम्र 6 साल से कम नही होनी चाहिए लेकिन राजस्थान के ज्यादातर उच्च प्राथमिक स्कूलों में कक्षा एक तीन वर्ष के बच्चे भी आ रहे हैं | क्यूंकि इस तथाकथित "प्रवेश उत्सव" के नाम पर नामांकन बढ़ाने के लिए इन स्कूलों में इतने छोटे बच्चों को एडमिशन दे दिया जाता है |

 शिक्षा का अधिकार यानी आरटीई का हवाला देकर उन्हें हर साल अगली कक्षा में उन्नत कर दिया जाता है | इसका परिणाम यह होता है कि उम्र के अनुपात में बच्चा बड़े स्तर की कक्षा में प्रवेश कर जाता है और शैक्षिक स्तर पर पिछड़ता चला जाता है | प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता इन सरकारी स्कूलों में भगवन भरोसे है या यूँ कहें कि नगण्य है जिससे शैक्षिक रूप से “कमज़ोर” वर्ग तैयार हो रहा है | ये वो हिस्सा है जो प्राथमिक शिक्षा पूरी कर सकता था सच कहा जाये तो हमारी शिक्षा व्यवस्था में बहुतायात में एक तरह का "अपशिष्ट" बन रहा है जिसमे देश भर से 40 प्रतिशत ड्रॉप आउट और राजस्थान जैसे कुछ राज्यों में 75 प्रतिशत तक भी पहुँच गया है |

 राजस्थान में वर्ष 2011 में “असर” की एक रिपोर्ट के अनुसार जो बच्चे अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी कर चुके हैं उनमे से 57.3% बच्चे ऐसे हैं जो दूसरी कक्षा की किताब भी नही पढ़ पाते और 75% गणित में सरल भाग भी नही कर पाते | वर्ष 2006 में पांचवी के 56% बच्चे पढ़ पाते थे लेकिन वर्ष 2011 में गिरकर यह आंकडा 42.7% तक आ पहुंचा | गणित में तो हालत और भी ख़राब है .इसमें वर्ष 2006 से अबतक 30 प्रतिशत तक की गिरावट आई है |

 वहीँ आरटीई को आधार मानकर जो स्कूल तीन से चार साल के बच्चों को अगली कक्षा में उन्नत करते हैं पर सच तो यह है कि यह कानून तो 6 साल के बच्चे पर ही लागू होता है और दूसरी ओर सभी राज्यों में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा हमारे देश भर में लगभग साढ़े बारह लाख आँगनवाडियां खाली ही पड़ी रहती हैं | वो भी इन बच्चों को आँगनवाड़ियों में लाने का बीड़ा नही लेते | शिक्षा की गुणवत्ता आकड़ों के घालमेल में कहीं खो सी गई है | आकड़ों के पीछे की सच्चाई और उस सच्चाई को गुणवत्ता के ढांचे में देखने की जरुरत है | विद्यालयों में बच्चों की संख्या बढ़ने से खुश होना एक समय की संतुष्टि दे सकता है लेकिन लम्बे समय के लिए यह घातक है | आखिर उच्च शिक्षा की गुणवत्ता प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता पर ही आधारित है |