शनिवार, 31 जनवरी 2015

तशरीफ़ को उठाना होगा

इस देश में अक्सर लोग कई बातें कहते हुए मिल जाते हैं जैसे इस देश में जब तक गरीबी नहीं जाती कुछ नहीं हो सकता या एजुकेशन सिस्टम में सबसे पहले बदलाव लाना होगा , या इस देश का तो आर्थिक ढांचा ठीक करना होगा . या जब तक लोगों का स्वास्थ्य ठीक नहीं हो जाता तब तक कुछ नहीं किया जा सकता | साथ ही ये भी कि सब एसी कमरों में बैठकर ही पोलिसियाँ बनाते हैं |

सबसे जरूरी  लेकिन ये है कि लोगों को इस बात के लिए तैयार करना कि किसी भी स्कीम पर काम करने के लिए सभी को अपना समय देने की जरुरत है | जैसे कि यदि कोई टीचर ये कहता है कि बच्चों की पढ़ाई नहीं हो रही है , वो कुछ पढना नहीं जानते हैं तो उन्हें अपने वक़्त में से कुछ अलग टाइम देना होगा, ज्यादा से ज्यादा काम करना होगा, सिर्फ बोलने से काम नहीं चलेगा |

Most important is that people shuold be ready to work for they intend to see. They should take tension and little more pain in their daily life. 

शुक्रवार, 5 सितंबर 2014

क्यों नहीं बोले शिक्षक

आज के पूरे दिन की सबसे बड़ी विडम्बना ये थी शिक्षक ही शिक्षक दिवस से नदारद रहे या कर दिये गए | असल में महान मोदी जी नहीं ये शिक्षक ही हैं जिनहोने आज पीएम के भाषण को हर बच्चे तक पहुंचाया | लेकिन ये सब कहाँ दिखाई दिया मोदी जी को ? आज इतना ड्रामा में ये जरूर साबित हो गया कि इस देश में राजनीति से ऊपर कुछ नहीं , शिक्षा भी नहीं |

और ये शिक्षा और शिक्षक बस वही कर सकते हैं जो उन्हे कहा जाए | जैसे बाकी काम होते रहें हैं ऐसे ये काम भी निपट गया और आदेश का पालन हो गया | लेकिन सबसे ज्यादा दुख की बात तो यह है कि शिक्षक चुप रहें | आज के पूरे दिन में वे स्कूल पहुँचने पर प्रोजेक्टर , स्पीकर, इंटरनेट , व्यवस्था के साथ साथ बच्चों को संभालने के इंतजाम में ही लगे रहे इंतजाम में लगे रहे  |

शिक्षकों से ज्यादा बाल दिवस के रूप में इसे बना दिया गया | मीडिया भी हर बार बच्चे से जाकर पूछा कि आप मोदी जी से क्या पूछेगे लेकिन किसी चैनल ने किसी शिक्षक से बात नहीं की |कि उन्हे क्या चाहिए ? लेकिन ज़ही कहीं मौका मिला त वो बोल गए कि टीचर्स की कमी है |

आप यदि एक सरकारी स्कूल के टीचर की दिनचर्या सुनेंगे तो सोचेंगे कि वो किन परिस्थितियों और हालातों में काम कर रहा है और काम नहीं कर रहा है या फिर नहीं कर पा रहा है | आप जब उन्हे सुनेगे तो उनकी परेशानियाँ सुन सुन कर घुटने टेक देंगे लेकिन इस आदेश पर उनसे जो कहा गया वो बहुत मेहनत करके जुट गए | उनके मुंह से एक आह नहीं निकली यही मुझे खराब लगा | अरे जो बात , जो समस्याएँ आप मुझे बताते रहते हो वो आप आज क्यूँ नहीं बोले ? क्यों चुप रहे ?

कल मैं एक विद्यलय में गई जहां की टीचर एक लिस्ट बना रही थी | शीट पर नाम लिख रही थी | मैंने पूछा क्या आपके पास डाटा कम्प्युटर  में नहीं है ? | जल्दी से कॉपी पेस्ट करें और भेज दें  | उनका जवाब था उन्हे नहीं आता |

तो मिस्टर मोदी जी ये है आपका भारत जहां आज आपने अपने एक आदेश से प्रोजेक्टर लगवाएँ हैं वहाँ टीचर एक्सेल शीट बनाना भी नहीं जानते | अरे उनके लिए तो जनसख्या और मिड दे मील जैसे काम ज्यादा जरूरी हैं
| इसके बाद वो टीचर बोली कि क्लर्क भी नहीं है हमारे स्कूल में | सब काम खुद  ही करने पड़ते हैं | आज भी मैनुअल लिस्ट तैयार होती हैं और आप डिजिटल इंडिया का सपना देख रहे हो |

मोदी जी "बी प्रैक्टिकल" भूल गए अपने दिन ? आप जरूर आगे पहुँच गए है लेकिन शिक्षक आज भी वहीं है नीरीह, कमजोर, आदेशों का पालन करने वाला एक सरकारी नौकर |

अच्छा होता अगर इन शिक्षकों को मौका मिलता अपनी बात कहने का , इनकी समस्याओं को कोई कम से कम सुन ही लेता | वो आज भी चुप रहे |




शिक्षा और शिक्षक

शिक्षा मे लगातार हो रहे प्रयासों के बाद मानव संसाधन मंत्रालय की बात केवल इस बात पर आकार अटक जाती है कि हमारे देश में प्रतिभावान आधायपकों की कमी है | शिक्षकों की प्रतिभा को सुधारने से पहले  उनकी प्रतिभाओं को पहचानना होगा साथ ही उनकी समस्याओं को समझना होगा | भारतीय  शिक्षण व्यवस्था में गुरु का स्थान सदैव से ही अहम रहा है | प्राचीन  काल  की गुरु शिष्य परंपरा तो पूरे  विश्व में जानी जाती थी | लेकिन समय के साथ साथ भारतीय गुरु एक सहायक के रूप में  सामने आया | उसकी भूमिका बच्चे के अंदर ज्ञान भरने की नही बल्कि उसके अंदर छिपे ज्ञान औरकौशल को मुखरित करने की थी | 
एक समय था जब गुरु ही ब्रह्मा और गुरु ही सर्वेसर्वा था | पहले एक बच्चा गुरु की ही शरण में कई वर्ष रहता और जीवन की शिक्षा ग्रहण करता  | लेकिन अब वातावरण कुछ और ही है पूरे देश में शिक्षा  को लेकर एक अलग ही माहौल है | विभिन्न राज्यों में प्राथमिक शिक्षा की अवस्था अत्यंत सोचनीय है | 
जो शिक्षक समाज का एक प्रभावी व्यक्ति था वहीँ अब वह एक सरकारी नौकर ही बन कर रह गया है | सरकार अध्यापकों की गुणवत्ता पर कोई विशेष कदम नही उठाती | उसके लिए  इस  पद  कोई  महत्ता बची नही है | उसे  तो लगाव  है  बच्चों  से  पद  से  |  दोष  ढूंढे  तो  वह   खुद  भी इस  बदलाव  का  पीड़ित  है  | देश के गरीब ग्रामीण स्कूलों में काम करने वाले अनेक अध्यापक यदि अयोग्य और आलसी हैं तो इसका कारण वे भयावह परिस्थितियाँ हैं जिनमे वे रखे गए हैं | सरकार अध्यापकों की गुणवत्ता के लिए कोई ठोस कदम नही उठाती | ट्रेनिंग  के  माध्यम  से सरकार  अपनी  जिम्मेदारी  को  नाम  के  तौर पर पूरा तो कर  रही  है  लेकिन  शिक्षक   और  बच्चे  उससे  कितना लाभ  उठा  पाते हैं यह तो वर्तमान स्थितियां देखते ही बनता है | ट्रेनिंग के नाम पर केवल उपस्थिति दर्ज  हो रही है |  यह सच है कि शिक्षक को ऐसा माहौल दिया जा  रहा  है  जहाँ  वह अपने पद से ऊब  चुका  है | और अगर गलती से भी कोई अध्यापक पूरी मेहनत से काम करता भी है तो स्थितियों और संसाधनो के अभाव के आगे जल्द ही घुटने टेक देता है | फिर भी कोई ऊर्जावान अध्यापक ऐसी विषम परिस्थितियों में भी काम करे तो भी उन आद्यपकों की हंसी का पात्र बन जाता है जिन्होंने इन स्थितियों के साथ सम्झौता कर लिया हो | शिक्षा की नौकरशाही  के शिखर से लेकर गाँव के प्राइमरी स्कूल की तलहटी तक कोई बंदा मुश्किल से ही मिलेगा जो नए प्रयासों के जरिये शिक्षा में परिवर्तन लाने को उत्सुक हो | परिवर्तन की बात सभी करते हैं पर केवल इंतज़ार के संदर्भ में | परिवर्तन लाने की छोटी कोशिश खुद करने दूसरों की छोटी छोटी कोशिशों को सम्मान व सहयोग देने और ऐसी कोशिशों में निहित जोखिम का एकजुट होकर सामना करने को तैयार लोग शिक्षा विभाग में कम ही दिखाई पड़ते हैं |शिक्षक के जीवन में नवाचार के क्या मायने हैं ? उसके लिए प्रयोग का दर्शन निरर्थक है | विशेषज्ञों की सलाहें उतनी ही बेमानी है जितनी उनकी खीझ | बच्चों को पढ़ाना उसके लिए एक सरकारी ज़िम्मेदारी है | यह एक ऐसी ज़िम्मेदारी है जिसे स्वयं सरकार गंभीरता से नही लेती | प्रयोग करने और शाला के जीवन को संजीदा बनाने की चर्चा प्राथमिक शिक्षक अपनी ट्रेनिंग के दौरान सुन अवश्य चुका होता है , पर इस चर्चा में उसकी आस्था उतनी ही सतही होती है जितनी उसकी प्रशिक्षकों की | 
शिक्षक अब केवल अधिकारियों को रिपोर्ट देने वाले नौकर बन गए है | हर दिन की डाक को लिखना और समय पर पहुचना ही उनकी नौकरी का अर्थ रह गया है | अपनी कमजोरी और मजबूरी को इन रिपोर्टों के नीचे दबाने में ही वे अपनी भलाई समझते हैं | सभी परिस्थितियां इतनी उदासीन है कि वह कुछ बोलना भी नही चाहता | अध्यापक नौकरशाही के प्रति मन से या बेमन से समर्पित है उनके पास न तो कोई अपनी संगठनात्मक शाकित है , न वे किसी व्यापक समूह के गठन की किसी प्रक्रिया से जुड़े हैं | जो टूटे फूटे संगठन विभिन्न राज्यों में हैं , उनमे किसी राजनीतिक दृष्टि या सामाजिक दर्शन का प्रमाण नही मिलता | साथ ही अगर ऐसे छोटे छोटे संगठनो का मुद्दा केवल अध्यापकों के मानदेय तक ही सीमित रह जाता है | क्योंकि ऐसे मुद्दे उठाने से सहयोग की उम्मीद बढ़ जाती है | आज अध्यापकों का  मानदेय ही उनकी  जरुरत बन गया है | यदि मानदेय या भत्ते को लेकर कुछ कमियां हो तो  पूरे देश में शिक्षक  आन्दोलन खड़े हो  जाते है | पिछले दस  वर्षों से शिक्षकों ने अपने कौशल कला  और गुणवत्तापूर्वक  शिक्षण कैसे होना चाहिए  , इसके लिए  आवाज़ बुलंद नही की  | केवल भत्ते को लेकर ही  समाचारों में शिक्षक आन्दोलन की खबरें सुनने को मिलती हैं | 
पिछले दस सालों में शिक्षकों को लेकर राजस्थानहरियाणा , झारखण्ड , रांची में जितनी भी हडतालें हुईं हैं,उनकी मांग में शिक्षकों ने अपने भत्ते ही हैं | शिक्षकों का इस तरह के आन्दोलन खड़े करना सरकार कीशिक्षा को लेकर हवाई जिम्मेदारी ही दिखाता है | 
वहीँ दूसरी ओर अध्यापक बनने के लिए बी एड जैसी योग्यता सिर्फ एक खानापूर्ति  बन गई है |  बी एड उन्हें एक अच्छा अध्यापक बनने को प्रेरित नही करता बल्कि सिर्फ  सरकारी नौकरी पाने का  जरिया बन गया है | आज कल अध्यापकों की नौकरी को आरामदायक नौकरी कहा जाने लगा है | छोटे छोटे शहरों और कस्बों में बीएड एक आसान रास्ता बन गया है सरकारी नौकरी प्राप्त करने का | हर साल लाखों विद्यार्थी बीएड करते हैं और सरकारी नौकरियों में जगह बना लेते हैं | और जब तक सरकारी नौकरी में एक सरकारी अध्यापक नही बन जाते तब तक अपना लक्ष्य यही बनाए रखते हैं | और इस तरह की डिग्री केवल उन्हे नौकरी लेने के लिए प्रेरित करती है | और अब हर राज्य की सरकार ने अध्यापक पात्रता परीक्षा को जरूरी बना दिया है | हर राज्य मे बेरोजगारी भत्ता मिलता है लेकिन बीएड कर बेरोजगारों की फौज से सरकार पैसा इकट्ठा कर रही है |लगभग 500 रुपए में पात्रता परीक्षा का फॉर्म हर साल लाखों अभ्यर्थी भरते हैं और परिणाम केवल पाँच प्रतिशत तक ही आता है | इस तरह सरकारी अध्यापक बनने की चाह मे सरकारी खजाने को भरा जा रहा है |  बीएड बेरोजगारों की फौज से निपटने का एक अच्छा तरीका सरकार ने अपनाया है | जब से सरकार ने यह नया नियम लागू किया है तभी से बीएड प्रशिक्षण संस्थान ये पात्रता परीक्षा पास कराने वाले संस्थान हो गए हैं | यदि बीएड के बाद भी इस पात्रता परीक्षा में असफल हो जाएँ तो आपके लिए बाज़ार में बहुत दुकाने खुल गई हैं जो इस पात्रता परीक्षा मोटी रकम में पास करने की पूरी ज़िम्मेदारी लेती है | इस तरह प्रतियोगिता से निकले अध्यापक केवल प्रतियोगिता को जन्म देते हैं |  
वहीं दूसरी ओर समाज में भी अध्यापक की छवि एक भयावह जीव की तरह है | जब भी घर पर बच्चा पढ़ता हुआ नज़र ना आए तो अभिभावक बच्चे को एक ही बात बोलते हैं कि पढ़ाई कर नही तेरे अध्यापक से शिकायत की जाएगी | यानि बच्चे के दिमाग मे एक बात ठूंस दी जाती है कि यदि उसने पढ़ाई नही की तो अध्यापक उसे पीटेंगे या मारेंगे | अध्यापक की छवि को बच्चे के दिमाग में ऐसे डाला जाता है कि उससे बड़ा और कोई नही होगा जो उसकी पढ़ाई के लिए जिम्मेदार हो | यदि अध्यापक कक्षा में बच्चे पर कोई ज़ोर न भी डाले ओर बच्चे को केंद्र मे रखकर ही पढ़ाये तो भी उसकी छवि ज्यों की त्यों ही रहेगी | सरकार की कोशिशों के बनस्पत अभिभावकों के नज़रिये और सोच के साथ भी शिक्षक की लड़ाई जारी है |
शिक्षक के सामने बहुत बड़ा सवाल यह है कि कैसे वह ज्ञान की पुनर्रचना के कम को बच्चे की रफ्तार से करे | न कि पाठ्यपुस्तक और पाठ्यक्रम निर्माताओं की रफ्तार से | शिक्षक बच्चे द्वारा ज्ञान के अर्जन में ईमानदारी बनाए रखते हुये अपनी भूमिका कैसे निभाए ये सवाल आज हर शिक्षक के लिए गंभीर बन चुके हैं क्योंकि शिक्षक को उस व्यवस्था ने निरंतर बईमान बनाया है |
 राज्य सरकारों ने शिक्षा में कई तरह के बदलाव किये हैं उसमे सुधार लाने के लिए  लेकिन ये सुधार के  नाम पर सिर्फ सरकारी प्रपंच ही मालूम पड़ते हैं | प्राइमरी शिक्षा की कमी को पूरा करने के लिए सर्व  शिक्षा अभियान राज्य स्तर  पर सरकारी स्कूलों  को संबल देती है  भौतिक सुविधाओं में भी  और अध्यापकों की ट्रेनिंग भी कराती है | लेकिन  एसएसए  की इस  ट्रेनिंग में केवल खानापूर्ति  और सरकार  का ढकोसला है  |  इस तरह की  कार्यशालाओं ने उन्हें  ऊबने के लिए  मजबूर कर  दिया है | 
साथ ही बच्चों के साक्षारता के स्तर को एक समान लाने के लिए गुरु मित्र शिक्षक , जो बच्चे ड्रॉप आउट हैं उनके लिए ब्रिज कोर्स की शुरुआत की गई है जिसके लिए अलग टीचर नियुक्त किए ज्ञे हैं | इनके अलावा पैरा टीचर, विद्यार्थी मित्र  और संविदा पर टीचर रखे गए हैं | एक शिक्षक के भी सरकार द्वारा अलग अलग रूप तैयार कर दिये गए हैं | ये अध्यापक दो – दो हज़ार रुपए की तनख़्वाह पर नियुक्त किए जाते हैं | स्कूली अध्यापक सारा का सारा जिम्मा इन टीचर्स पर डाल देते हैं | जो कि आद्यपकों में रोष पैदा करता है और बच्चों में में विद्यालय के प्रति अरूचि |  
शिक्षकों के उत्साहवर्धन के लिए हर साल राज्य और केंद्र सरकारें शिक्षकों को उनके काम के लिए इनाम वितरण करती है | लेकिन यह इनामी प्रक्रिया में इतना घालमेल है कि ऐसे शिक्षकों को इनाम मिल रहे हैजो अन्य शिक्षकों को हतौत्साहित ही करते हैं | प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्राथमिक शिक्षा के ऊपर अपने वक्तव्य में कहा था कि बच्चों के सीखने कि गति में लगातार  गिरावट आई है और अब हमें शिक्षाकि गुणवत्ता के लिए नामांकन और खर्च से निकल कर कक्षाकक्ष की तरफ ध्यान देना होगा | लेकिन शिक्षाकी गुणवत्ता के लिए जरूरी है अच्छे शिक्षकों का होना | अच्छे शिक्षकों का होना आज एक बड़ी समस्या है|
वर्ष 2004-05 से शिक्षा पर होने वाले सरकारी खर्च में लगातार बढ़ोतरी हुई है | यह खर्च 2004-05 में हमारीजीडीपी का 3.3 प्रतिशत था और 2011-12 में यह बढ़कर 4 प्रतिशत हो गया | हर  साल शिक्षा को लेकर एक नई नीति और शिक्षा के ऊपर बढ़ रहा खर्च सिर्फ सरकार की  मजबूरी दिखाता है | शिक्षा को लेकर किसीतरह कि कोई ठोस  नीति नही है | प्राथमिक स्तर  पर शिक्षा कि स्थिति यह बताती है कि शिक्षा के क्षेत्र में इस तरह से काम करने पर  कुछ नही होगा |  शिक्षक  को उचित ट्रेनिंग दी जाये और शिक्षा के क्षेत्र में हो  रहे भ्रष्ट्राचार को ख़त्म  होना होगा  |  और  अगर ऐसे ही  स्थितियों के साथ समझौता कर लिया गया तो भारत के पास शिक्षा के  नाम पर सिर्फ नीतियों  का झुनझुना ही बचेगा | 
आज शिक्षा सरकार के महत्वपूर्ण मुद्दो से बाहर हो गई है | अब कोई नेता शिक्षा के स्तर में दिलचस्पी नही लेता | न किसी नेता के पास शिक्षा को लेकर कोई नए विचार या जानकारी को नए ढंग से समायोजित करने की क्षमता ही है न ही कुछ नया करने की इच्छा | नए विचार न सही , पुराने कार्यक्रमों को जीवित रखने की प्रेरणा भी नही है | उदाहरण के तौर पर शिक्षा में बराबरी की बहस को जीवित रखने की बात को आज कोई संसद या विधानसभाओं में उठाने की जरूरत महसूस नही करता |