सरकारी शिक्षा
का सच
अंशु सचदेवा
भारत देश में सर्व शिक्षा अभियान
सम्पूर्ण साक्षरता पा लेने का उद्देश्य लिए हुए है| भारतीय प्राथमिक शिक्षा
मे सरकार हर साल कुछ नीतियाँ , कुछ निर्णय लेती है |
ऐसा ही एक निर्णय था गरीब घर के बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में 25 प्रतिशत आरक्षण
देने का | जैसे ही ये खबर आई गरीब और मजबूर तबके अपने बच्चों
के लिए नए सपने देखने लगे | सरकार के आदेशानुसार प्राइवेट स्कूलों मे गरीब
बच्चों को आरक्षण मिल भी गया और आज वो बच्चे बड़े प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा
ग्रहण भी कर रहे हैं | ये स्कूल ऐसे स्कूल हैं जहां उच्च वर्गीय और उच्च –
मध्यम परिवारों के बच्चे आते है | ये वे स्कूल हैं जिनका भौतिक वातावरण आधुनिक है |
जहां बच्चों को पढ़ाने के लिए ज़ोर दिया जाता है और समय समय पर सांस्कृतिक कार्यक्रम
और कला आदि बच्चों को सिखाया जाता है | हर महीने अभिभावकों और शिक्षकों की मीटिंग होती है
| बच्चे के सम्पूर्ण विकास की ओर ध्यान दिया जाता है |
इस तरह के विद्यालयों मे यदि एक गरीब परिवार का बच्चा प्रवेश लेगा तो निश्चय ही
उसका विकास होगा | पर गौर करने वाली बात यह है कि यह विकास किस तरह
का होगा | कहीं यह सामाजिक अंतर का विकास तो नही है ?
वहीं दूसरी ओर सरकारी
विद्यालयों मे ऐसा कुछ भी नहीं होता विशेषत: छोटे शहरों और गावों मे |
ना तो आधुनिक वातावरण और न ही नयी नयी गतिविधियों से शिक्षण |
अगर नया कमरा बन भी जाये तो उसकी दीवारें इतनी उदासीन होती है कि स्कूल के प्रति
कोई लगाव ही न पैदा हो | इन सरकारी स्कूल के शिक्षकों से जब इस आरक्षण के
विषय में बात की जाये तो जवाब आता है , “ये लोग गरीब है , इनके बच्चे अच्छे स्कूलों
मे पढ़ जाएंगे तो अच्छा होगा |” वहीं कुछ शिक्षक इसे सरकार की चाल मानते हैं और
बताते है कि सरकार चाहती है कि सभी बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढे और ऐसा कर के
सरकार प्राइवेट स्कूलों की पकड़ को मजबूत बना रही है और
जिन गरीब बच्चों को इन प्राइवेट स्कूलों में आरक्षण नही मिल पता उनके माता पिता का
ये कहना होता है कि हमारे पास भी यदि पैसे होते तो हम भी अपने बच्चे को प्राइवेट
स्कूल मे दाखिला करवा देते |
असल बात तो ये है कि सरकार
ने अपने इस फैसले से अपनी कमजोरी को ही स्वीकार किया है |
मतलब सरकार ने यह मान लिया है कि प्राइवेट स्कूल , सरकारी विद्यालयों से
बेहतर हैं और गरीब परिवारों के बच्चों को भी इन विद्यालयों मे पढ़ने का अवसर मिलना
चाहिए | इस साल के बजट में शिक्षा के लिए 64 हज़ार करोड़ रुपए का आवंटन
हुआ | क्यों सरकार सरकारी विद्यालयों का भी ढांचा आधुनिक नहीं बनाती ?
क्यों सरकारी अध्यापकों को नई तकनीकी शिक्षण गतिविधियों की ट्रेनिंग नही दी जाती ?
क्यों सरकारी विद्यालयों को प्राइवेट स्कूलों जैसा भौतिक रूप और शिक्षकों को उच्च
स्तर की ट्रेनिंग नहीं दी जाती ?
वैसे भी आज के समय मे यदि गरीब
परिवारों की पहुँच अपने बच्चे को बड़े प्राइवेट स्कूलों मे दाखिला दिलवाने की नहीं
है तो भी वे सरकारी विद्यालयों के रूप और प्रकृति से खुश नही जान पड़ते हैं |
वहीं अन्य प्राइवेट स्कूलों मे मिल रही शिक्षा से वाकिफ हैं और अपने बच्चों को को
बेहतर शिक्षा देने के पक्ष मे हैं |
यदि प्राइमरी शिक्षा की
बात की जाए तो विडम्बना की बात यह है कि जिस केरल राज्य मे पूर्ण साक्षरता का डंका
बजा कर सरकार अपना महिमामंडन करती रही है असर रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2012 में ,
इस राज्य मे 60 प्रतिशत से अधिक बच्चे प्राइवेट स्कूलों मे पढ़ने जाते हैं |
इसी वर्ष में पूरे देश में प्राइवेट विद्यालयों मे नामांकन 28.3 प्रतिशत है |
सच तो यह है कि वर्तमान
में भी हमारे देश में 6 से 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों का 67 प्रतिशत हिस्सा अब भी सरकारी स्कूलों मे जाता है | लेकिन उससे भी बड़ा सच तो
यह है कि ग्रामीण इलाकों में हर साल प्राइवेट स्कूलों मे नामांकन दस प्रतिशत की दर
से बढ़ रहा है और यह सिलसिला इसी तरह से चलता रहा तो वर्ष 2018 तक भारत देश के
ग्रामीण इलाकों मे 50 प्रतिशत बच्चे इन प्राइवेट स्कूलों में पढ़ रहे होंगे |
सोचने वाली बात तो यह है कि सर्व शिक्षा अभियान का सम्पूर्ण साक्षरता पा लेने उद्देश्य
किस तरह से पूरा हो रहा है |
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