दिल्ली में हुई दुर्घटना ने कई बड़े
आन्दोलन खड़े कर दिए
। विरोध में
लोगों ने नए
नए तरीके अपनाए।
किसी ने फेसबुक
पर काला धब्बा
दिखाया तो हजारों
लोगों ने बलात्कारियों को फांसी देने की
सजा के लिए याचिकाओं पर हस्ताक्षर करवाए
। किसी नेता
ने इसे दहला देने वाली घटना
बताया तो किसी ने कहा के
वक़्त लगेगा ।
नियमों और कानूनों के
बदलाव के लए भी
आवाजें उठ रही
हैं कि सडको,
बसों और सभी
सार्वजानिक स्थलों पर महिलाएं सुरक्षित हों
। इस पूरे
प्रकरण में सभी
लोग उस लड़की
को न्याय दिलवाने के लिए
आगे आयें हैं
। लेकिन जब
कोई बलात्कार होगा
तो ही कोई
नियम कड़ा होगा? क्या
सिर्फ न्याय की
जरुरत उसी लड़की
को है जिसके
साथ यह दुष्कर्म हुआ
। उसके साथ
न्याय कब होगा
जिसकी इच्छाओं के
साथ हर रोज़
बलात्कार होता है ।
न सिर्फ सार्वजानिक स्थानों पर
बल्कि घर पर
भी । बलात्कारियों को
फांसी देने से
क्या वह भाई, वह पिता अपनी सोच
को खोल पाएगा
? क्या ऐसा होने
लगेगा कि हमेशा घर
में चाय बनाने
के लिए पिता
पुत्री को नही
कहेगा या उसे
घर जल्दी आने
के लिए नही
कहेगा? इसी दौरान अखबार की हेडलाइन आई "बेटी, घर जल्दी आया करो । " इसे पढ़कर ऐसा लगा मानो शारीरिक उत्पीडन से मुक्ति मिलेगी लेकिन सवाल फिर मानसिक उत्पीडन को लेकर हुआ, इच्छाओं के बलात्कार को लेकर हुआ ।
वहीँ एक और आवाज़ महिलाओं के एक हिस्से से आ रही है जो यह कह रहा है कि हमें खुद से ही कुछ करना होगा । ऐसा कह कर हम स्वयं को खुद इस समाज से अलग कर के देख रहे है ।
सारा देश बलात्कारियों के खिलाफ खड़ा है क्यों कोई महिलाओं के साथ नही खड़ा है ? महिलाओं को सुरक्षा देने की बात जब हम करते है तो यह समाज अपनी ही नज़रों में गिर जाता है । सुरक्षा नही हमें सम्मान की जरुरत है । और यह सम्मान किसी माँ याबहन को ही याद करके नही हो बल्कि मुझे मेरा सम्मान चाहिए , अपना सम्मान चाहिए । मैं यहाँ हर उस लड़की की आवाज़ बन रही हूँ जो हर रोज़ अपनी इच्छाओं को गले दाबे चुप है । घर में भी और समाज में भी ।
राजस्थान के ही एक गाँव की लड़की जो एथलेटिक्स में राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का हिस्सा सिर्फ इसलिए नही बन पायी क्योंकि उसके मत पिता उसके साथ नही आये। एक लड़की इसलिए नही पढ़ पायी क्योंकि उसकी शादी करा दी गई , एक लड़की इसलिए मर गयी क्योकी उसने अपने गोत्र से अलग किसी लड़के से प्रेम किया। इन सारी इच्छाओं के बलात्कार को सम्मान कब मिलेगा? उसके लिए कोई नियम कानून कब बनेगा ? जवाब इसका सरकार से नही इस समाज से चाहिए ?
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