शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

"कोस कोस पर बदले पानी"....


पानी जीवन का एक अहम हिस्सा है | आदिकाल से ही पानी ने मानव जीवन को सरल बनाया है | एक समय ऐसा था जब नदियाँ , तालाब, सरोवर आदि जल के स्त्रोतों से ही इन्सान पानी पीता भी था और इस्तेमाल भी करता था | फिर धीरे धीरे तकनीक और विज्ञान के विकास ने भी पानी को इस्तेमाल किया और पानी से बिजली बनने लगी, भाप से इंजन चलाए जाने लगे | एक तरफ तो मानव जीवन को सरल बनाने के लिए पानी का इस्तेमाल तकनीक और विज्ञान में किया जाने लगा वहीँ दूसरी ओर पानी दूषित भी होने लगा |

समय बीतने के साथ पानी और भी गन्दा होता गया | अब पीने के लिया स्वच्छ पानी की जरुरत थी | स्वच्छ पानी की इस अवधारणा ने "मिनरल वाटर" जैसे पानी को जन्म दिया और "बिसलेरी" का आविष्कार हुआ | मनुष्य ने अपने स्वास्थ्य के लिए "मिनरल वाटर" पीना शुरू किया और साथ ही खाना बनाने के लिए अलग और कपडे धोने के लिए अलग यहान तक की हाथ धोने के लिए अलग तरह के पानी का इस्तेमाल किया जाने लगा | इस " मिनरल वाटर" की गाथा बड़ी ही रोचक निकली | आज कल तो बाज़ार में मिनरल वाटर के करीब पचास से अधिक ब्रांड्स उतर आयें हैं |
अब चिंता यह है कि पिया जाये तो कौन सा पानी पिया जाये? "बिसलेरी " या "एक्वाफीना" , "मैकडोवल्स" या "एक्वालाईफ" | "यानि जो पानी पहले सभी के लिए एक समान थे , उसके अब सौ से भी अधिक रूप देखने को मिलते हैं | लेकिन अच्छे स्वास्थ्य के लिए पानी के किस रूप पर विश्वास किया जाये ?

हमारे भारत के लिए अक्सर यह कहा जाता है कि "कोस कोस पर बदले पानी , कोस कोस पर बदले वाणी " अभी भी यही प्रथा चल रही है लेकिन पानी की जगह "मिनरल वाटर " ने ले ली है | स्वच्छ पानी के विभिन्न रूपों में बिकने वाले यह ब्रांड दिखाते हैं कि भारत को अपने स्वास्थ्य कि चिंता है लेकिन आश्चर्यजनक बात तो यह है कि गंदे पानी से पैदा होने वाली बीमारियाँ अब भी जड़ से ख़त्म नहीं हुईं हैं | भारत में हर साल एक लाख से भी अधिक लोग गंदे पानी की वजह से मौत के मुह में समा जाते हैं | भारत के ६०० जिलों में जमीनी पानी का एक तिहाई हिस्सा पीने के लिए सुरक्षित नहीं है | राजस्थान , गुजरात और कर्नाटक जैसे राज्यों में हालत और भी ख़राब हैं | यहाँ कुल ६५ लाख लोग गंदे पानी से जनित बिमारियों के शिकार हैं | विश्व संसाधन रिपोर्ट के अनुसार भारत में सप्लाई का पानी सीवेज से निकलने वाले गंदे तत्वों से प्रदूषित है | भारत पानी की गुणवत्ता के आधार पर १२२ देशों की सूची में १२० स्थान पर है | विश्व विकास रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली का पानी दुनिया के कई बड़े शहरों से भी गन्दा है | केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के अनुसार दिल्ली के नलों से आने वाले पानी में कार्सोजेनिक और कुछ जहरीले तत्व मौजूद हैं जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय किये गए मानक से भी ऊपर हैं | रिपोर्ट के अनुसार भारत के पौने दो लाख गावों में लगभग २ लाख लोग रसायनिक पानी पीते हैं |



ये आकड़ें बताते हैं कि पानी के चाहे कितने ही अलग अलग ब्रांड आ गए हों लेकिन समय के साथ साथ पानी के स्वच्छता में कमी ही आई है | पीने के इस दूषित पानी ने न जाने कितनी ही मौतें ले ली हैं | स्वच्छता के नाम पर सिर्फ पैसा कमाने की तकनीक ने ही जन्म लिया है | सभी लोगों में एक समान रूप से प्रयोग आने वाले पानी को भी बाँट दिया गया है |
गाँधी ने कहा था कि नमक सभी के जरुरत की वस्तु है और इस पर सभी का समान रूप से अधिकार होना चाहिए | इसलिए गाँधी जी ने नमक आन्दोलन चलाया गया | लेकिन पानी तो न केवल मनुष्य बल्कि सभी पशुओं और पेड़ पौधों के लिए भी जरूरी है| लेकिन पानी के ये मानव द्वारा बदले हुए रूप इन्सान कि प्रवृति को ही दिखाते हैं | ब्रांडेड लोगों के लिए "ब्रांडेड" पानी और लोकल के लिए "लोकल" पानी|

मंगलवार, 31 मई 2011

ईश्वर की दी इस प्रकृति को नमन

ईश्वर की दी इस प्रकृति को
हम करें मिलकर नमन
जिसने व्यथित जीवन को
प्रदान किया चैन अमन                                 

कल -कल करती बहती नदी
सरसराता वायु प्रवाह 
हरे-भरे पौधों और पर्वतों से
सुसज्जित है हमारी धरा


कहीं समुद्र की विशाल धरा
कहीं पगडण्डी का छोटा किनारा
हर जगह हैं रंग बिखरे हुए
उजले हुए , निखरे हुए 
नमन है उसे मिलकर हमारा
जिसने इस धरती को संवारा 


इस सुन्दर प्रकृति को
न लगे किसी की नज़र
बचा लो इसे, संभालो इसे 
यदि करना है जीवन बसर
आओ मिल कर हम 
यही प्रण लें आज
रखेंगे अपनी धरा को संभाल
और बचाएंगे इसकी  लाज         



कौन है ज़िम्मेदार

 कौन है ज़िम्मेदार
भारत की इस दशा का
कही कौन है ज़िम्मेदार 
लोकतंत्र का ढांचा हिलाकर
खोखला किया किसने इसे बार-बार                                                                

 












गरीबी, भूख, अशिक्षा का
श्राप कब मिटेगा 
और कब तक इसकी हालत पर
यह  इन्सान  बद्सलूक हंसेगा
कहाँ गए विकास करने वाले इसके कर्णधार 
लोकतंत्र का ढांचा हिलाकर
खोखला किया किसने इसे बार- बार








कालविजयी हमारा भारत
एक महान शक्ति है
 फिर क्यों घूसखोरी, कालाबाजारी में सबकी भक्ति है?
हर दिन है मचता उत्पात 
हर समय है हाहाकार
 



लोकतंत्र का ढांचा हिलाकर 
खोखला किया किसने इसे बार- बार


रविवार, 23 जनवरी 2011

इतना आसां न था

सोचा था जिस डगर पर हम
ना रखेंगे कभी कदम
मालूम आज हमें ये हुआ                                                                
कि हम उसी के मालिक हैं
अब जब इस डगर के हम
मालिक बन ही गए
तो सोचा क्यों ना
आगे बढा जाये 
पर इस डगर पर हमारा चलना
इतना आसां ना था
काटों पर चल कर 
फूलों का नर्म लेना 
इतना आसां ना था
इस डगर के हम दो साथी
दुनिया से अलग तो हैं
पर हमारा साथ चलना 
इतना आसां ना था 
सोचा था हर मुश्किल का 
सामना मिल कर करंगे हम
पर प्यार के आगे किसी मुश्किल का आना 
इतना आसां ना था 
   
अंशु


बुधवार, 12 जनवरी 2011

शिक्षा में अधिकार rights in education

शिक्षा में अधिकार

  न्यूईयर के मौके पर 3 साल की चारू की मॉं उसके एडमिशन के लिए काफी परेषान थी । दिल्ली के किसी अच्छे से स्कूल में एडमिशन हो जाए बस नए साल की उनकी यही कामना है। हर नया साल अभिभावकों के लिए एक चिंता बनकर आता है क्योंकि इसी दौरान दिल्ली के अच्छे न होते हुए भी तथाकथित अच्छे स्कूलों में अपने बच्चे के एडमिशन के लिए दौड़ शुरू हो जाती है। जहॉ एक तरफ माता पिता 


बढ़िया से बढ़िया स्कूल ढूंढते हैं  वहीं दूसरी तरफ प्राइवेट स्कूल मनमानी करने से नही चूकते  ।
       गौरतलब है कि दिल्ली के चार स्कूलों को सरकार के निर्देश न मानने के कारण नोटिस भी मिल गया है। लेकिन इसके बावजूद शिक्षा के व्यवसायीकरण पर रोक नही लगी है। सरकार गुर्राती है लेकिन इन स्कूलों का पंजा शैक्षिक समानता को दबोचता नज़र आता है। 1 अप्रैल 2010 को सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम बनाया । पर शिक्षा का अधिकार आज शिक्षा मे अधिकार में बदल गया है।
   
       वही दूसरी ओर सरकारी स्कूल आज गरीबों के स्कूलों में बदल गए है। सरकार के ऊंचे वादों पर अकर्मण्यता कहीं न कहीं प्राइवेट स्कूलों को षिक्षा मे अधिकार जमाने मे मदद कर रही है । भारत मे प्राइमरी शिक्षा का लगातार गिरता स्तर हमारे आने वाले कल के लिए अत्यंत घातक है। जरूरत है कि सरकार इन प्राइवेट स्कूलों के शिक्षा व्यापार पर कड़ी कार्रवाई करे ताकि शिक्षा का अधिकार के मायने साबित हों ।

रविवार, 9 जनवरी 2011

भ्रष्ट हीं होते हैं देशभक्त

बिनायक सेन को उम्रकैद की सज़ा के बाद

हमें बचपन में ही सिखा दिया जाता है कि हमें दूसरों की मदद करनी चाहिए , सदैव सत्य बोलना चाहिए। और साथ ही यह उम्मीद भी की जाती है कि आगे आने वाली पीढ़़ी को भी हम यहीं सिखाएं लेकिन बिनायक सेन ने लोगों की मदद करनी चाही तो सरकार ने उन्हें देशद्रोह करार दिया ।

  बिनायक सेन एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होनें देशसेवा को सबसे ऊपर माना लेकिन सत्तालोलुप सरकार के फैसले ने न सिर्फ लोकतंत्र का मजाक बनाया है बल्कि कहीं न कहीं आगे आने वाली को यह संदेश दिया है कि यदि गरीब और हाशिए पर पहुॅंचे लोगों की मदद की या उनकी समानता के पक्ष में कुछ कहा तो देशद्रोही माने जाओगे । सरकार के इस फैैसले से एक ही बात जो उभर कर सामने आ रही है कि देशद्रोही वही है जो देश का भला चाहता है । और सरकार अपने फैसले के पक्ष में खोखली दलीलें दे रहीं है। इससे पहले भी कितने ही उन लोगो की आवाजों को दबा दिया गया जो मानवाधिकारों के लिए उठी।
   
   इसके साथ ही यह फैसला हमारी न्याय प्रक्रिया पर भी बहुत बड़ा सवालिया निशान लगाता है । एक तरफ वो लोग हैं जिन्होने करोड़ों का घपला किया फिर भी अभी तक स्वतंत्र हैं वहीं दूसरी ओर वे हैं जो समानता , शांति और न्याय के लिए आवाज उठाते है तो उन्हें कुचल दिया जाता है।