शुक्रवार, 5 सितंबर 2014

क्यों नहीं बोले शिक्षक

आज के पूरे दिन की सबसे बड़ी विडम्बना ये थी शिक्षक ही शिक्षक दिवस से नदारद रहे या कर दिये गए | असल में महान मोदी जी नहीं ये शिक्षक ही हैं जिनहोने आज पीएम के भाषण को हर बच्चे तक पहुंचाया | लेकिन ये सब कहाँ दिखाई दिया मोदी जी को ? आज इतना ड्रामा में ये जरूर साबित हो गया कि इस देश में राजनीति से ऊपर कुछ नहीं , शिक्षा भी नहीं |

और ये शिक्षा और शिक्षक बस वही कर सकते हैं जो उन्हे कहा जाए | जैसे बाकी काम होते रहें हैं ऐसे ये काम भी निपट गया और आदेश का पालन हो गया | लेकिन सबसे ज्यादा दुख की बात तो यह है कि शिक्षक चुप रहें | आज के पूरे दिन में वे स्कूल पहुँचने पर प्रोजेक्टर , स्पीकर, इंटरनेट , व्यवस्था के साथ साथ बच्चों को संभालने के इंतजाम में ही लगे रहे इंतजाम में लगे रहे  |

शिक्षकों से ज्यादा बाल दिवस के रूप में इसे बना दिया गया | मीडिया भी हर बार बच्चे से जाकर पूछा कि आप मोदी जी से क्या पूछेगे लेकिन किसी चैनल ने किसी शिक्षक से बात नहीं की |कि उन्हे क्या चाहिए ? लेकिन ज़ही कहीं मौका मिला त वो बोल गए कि टीचर्स की कमी है |

आप यदि एक सरकारी स्कूल के टीचर की दिनचर्या सुनेंगे तो सोचेंगे कि वो किन परिस्थितियों और हालातों में काम कर रहा है और काम नहीं कर रहा है या फिर नहीं कर पा रहा है | आप जब उन्हे सुनेगे तो उनकी परेशानियाँ सुन सुन कर घुटने टेक देंगे लेकिन इस आदेश पर उनसे जो कहा गया वो बहुत मेहनत करके जुट गए | उनके मुंह से एक आह नहीं निकली यही मुझे खराब लगा | अरे जो बात , जो समस्याएँ आप मुझे बताते रहते हो वो आप आज क्यूँ नहीं बोले ? क्यों चुप रहे ?

कल मैं एक विद्यलय में गई जहां की टीचर एक लिस्ट बना रही थी | शीट पर नाम लिख रही थी | मैंने पूछा क्या आपके पास डाटा कम्प्युटर  में नहीं है ? | जल्दी से कॉपी पेस्ट करें और भेज दें  | उनका जवाब था उन्हे नहीं आता |

तो मिस्टर मोदी जी ये है आपका भारत जहां आज आपने अपने एक आदेश से प्रोजेक्टर लगवाएँ हैं वहाँ टीचर एक्सेल शीट बनाना भी नहीं जानते | अरे उनके लिए तो जनसख्या और मिड दे मील जैसे काम ज्यादा जरूरी हैं
| इसके बाद वो टीचर बोली कि क्लर्क भी नहीं है हमारे स्कूल में | सब काम खुद  ही करने पड़ते हैं | आज भी मैनुअल लिस्ट तैयार होती हैं और आप डिजिटल इंडिया का सपना देख रहे हो |

मोदी जी "बी प्रैक्टिकल" भूल गए अपने दिन ? आप जरूर आगे पहुँच गए है लेकिन शिक्षक आज भी वहीं है नीरीह, कमजोर, आदेशों का पालन करने वाला एक सरकारी नौकर |

अच्छा होता अगर इन शिक्षकों को मौका मिलता अपनी बात कहने का , इनकी समस्याओं को कोई कम से कम सुन ही लेता | वो आज भी चुप रहे |




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें