बराक ओबामा भारत की धरती पर आ चुके हैं। ओबामा की भारत यात्रा एक मायने में दोनो देशों के लिए महत्वपूर्ण है। एक तरफ ओबामा आउटसोर्सिंग के खिलाफ हैं तो दूसरी तरफ मनमोहन न्यूक्लियर डील को पूरा करने की कवायद मे लगे हैं , एक तरफ ओबामा अपने देश की लगभग 10 फीसदी बेरोजगार जनता को रोजगार दिलाने आएं हैं तो दूसरी ओर हमारा देश का लगभग आधा हिस्सा गरीबी के पालने मे झूल रहा है ।
जी हांॅ , यूनाइटेड नेशन्स की मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार दक्षिध एशिया मे , पूरे विश्व की आधी सबसे गरीब आबादी रहती है जिनकी संख्या 844 मिलियन है । भारत मे इस आबादी का 50 फीसदी हिस्सा है यानि 400 मिलियन से अधिक लोग जो रिपोर्ट के अनुसार भारत के आठ राज्यों मे हैं । ये मल्टीडाइमेन्शल रिपोर्ट है जो घरेलू स्तर पर शिक्षा , स्वास्थ्य और आय के गिरते स्तर पर विभिन्न देशों का हाल बताती है।
बिहार , जहॉं आजकल राजनेता चुनावी बुखार मे उलझे हुए हैं वहॉं गरीबी दर 81% तक पहुॅंच गई है। जनता की सुध लेने को कोई तैयार नही। यहॉं चुनाव लड़ रहे सभी नेताओं के भाड्ढणों में एक बात आम है कि चुनाव के बाद अगर सत्ता में आए तो सब चमका देगें पर फिलहाल ये सभी चुनावी दंगल मे लड़ने की कोई कसर न छोड़ेगे। इसके अलावा राजधानी दिल्ली भी इसी लिस्ट मे है इसके के अलावा राजस्कान , उप्र और मध्यप्रदेश में भी दुनिया के कुल गरीबों का कुछ हिस्सा रहता है इसके साथ ही यह रिपोर्ट बताती है कि भारत मे असमानता भी बढ़ी है। भारत असमानता के इन्डैक्स पर 30% और पीछे हो गया है जिसमें सबसे बड़े दो कारण हैं शिक्षा जिसमें 41 फीसदी की और दूसरा स्वास्थ्य 31% और पिछड़ गया है ।
वहीे दूसरी रिपोर्ट मे भारत की 5 हस्तियॉं सोनिया गॉंधी , मनमोहन सिंह , रतन टाटा , मुकेश अंबानी , और लक्ष्मी मित्तल इस वड्र्ढ फोब्र्स की सबसे प्रभावशाली लोगों की लिस्ट मे ‘शामिल हुए हैं । इसमे सोनिया गॉंधी 9वीे और मनमोहन सिंह 18वी रैंक पर हैं। जबकि मुकेश अंबानी ;29 बिलियनद्ध जो पिछले वड्र्ढ 44वें स्थान पर थे इस वड्र्ढ 34वें स्थान पर आ गए हैं । एक तरफ तो भारत गरीबी से पिछड़ रहा है तो दूसरी ओर भारत कंे ये लोग विश्व में सिर्फ अपनी पहचान बनाने की जुगत में लगे हैं । इसके अलावा लक्ष्मी मिततल ;28़7 बिलियनद्ध 44वें स्थान पर और रतन ट,ाटा 61वें स्थान पर रहे। मोटे तोैर पर देखा जाए तो भारत में जितने गरीब हैं;410 मिलियनद्ध उससे कहीं ज्यादा इनके पास सम्पति है ;28़.7बिलियन,29बिलियनद्ध। और प्रभाव तो पद से ही होता है। लेकिन भारत जो असमानता , गरीबी और अशिक्षा की मार झेल रहा है वो तो अंधेरे के गर्त मे फंसता जा रहा है।
वैसे मनमोहिनी सरकार आजकल खुश है क्योंकि यह रिपोर्ट ओबामा के आगमन की तैयारियों में छिप सी गई है। मीडियाजगत भी बराक ओबामा के सुबह से उठकर रात के सोने तक हर मिनट की खबर देने की प्रतिस्पर्धा मे अंधा हो गया है। और यूपीए सरकार अपना मैला दामन छिपा रही है ।। इंतजार है कब मीडिया आॅंख खोलेगा? पता नहीं इस भारत को कौन और कब देखेगा?
रविवार, 7 नवंबर 2010
मंगलवार, 7 सितंबर 2010
नहीं मिल सकता मुफ्त में अनाज
आज कि ख़ास खबर जो सभी अख़बारों के मुख्य पृष्ठ पर छाएं रही वह ये "नीति निर्धारण में दखल ना दें सुप्रीम कोर्ट: मनमोहन" | मनमोहन ने सुप्रीम कोर्ट के गरीबों के मुफ्त अनाज बांटने के सुप्रीम कोर्ट की भावनाओं का सम्मान करते हुए कहा कि ३७ फीसदी जनता को मुफ्त में अनाज नहीं बांटा जा सकता | मनमोहन के अनुसार ये असंभव है | मैं सोचतीं हूँ कि जब चुनाव होते हैं तो मनमोहन या कोई भी सरकार का इस ३७ फीसदी जनता तक पहुंचना असंभव नहीं है | ऐसे समय में सरकार इन्हें ढूँढ निकलती है, तो अब अनाज बाँटना संभव क्यों नहीं ? यूपीऐ सरकार के ही एक सदस्य राहुल गाँधी दालतों का गरीबों का घर ढूँढ कर वहां घी से चुपड़ी रोटी और सब्जी खा सकते हैं तो उन्हें अनाज मुफ्त में देना संभव क्यों नहीं ? सरकार एमपी का वेतन तो १५० गुना बड़ा सकती है तो अनाज क्यों नही बाँट सकती?
इन प्रश्नों के उत्तर नही मिल रहे है| सरकार शुरू से ही अपनी जिम्मेदारियों से बचती रही है और अब जब सुप्रीम कोर्ट का आदेश मिला तो पहले ये सरकार सोती रही और याद दिलाने पर कह रही है कि कोर्ट दखल ना दें | वैसे सरकार ने पीडीएस प्रणाली के तहत अनाज देने की बात कही है लेकिन सड़े हुए और सड़ते हुए गेहूं को नही बचा पा रही है सरकार | रूस जैसे गेहूं के इन्ते बड़े उत्पादक देश ने अपने घर में खाद्यान्न संकट ना हो इससे बचने के लिए गेहूं के निर्यात को रोक दिया है और भारत जैसा देश जिसकी आधी से अधिक आबादी गरीबी की मार झेल रही है वहां इसे सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है | अजीब विडंबना है |
सरकार ने कोर्ट को तो अपनी नीतियों में दखल देना से तो मना कर दिया पर अब देखना यह है कि सरकार कैसे उस जनता का पेट भरने के लिया अपनी निर्धारित नीतियों में कितनी कारगर होती है |
इन प्रश्नों के उत्तर नही मिल रहे है| सरकार शुरू से ही अपनी जिम्मेदारियों से बचती रही है और अब जब सुप्रीम कोर्ट का आदेश मिला तो पहले ये सरकार सोती रही और याद दिलाने पर कह रही है कि कोर्ट दखल ना दें | वैसे सरकार ने पीडीएस प्रणाली के तहत अनाज देने की बात कही है लेकिन सड़े हुए और सड़ते हुए गेहूं को नही बचा पा रही है सरकार | रूस जैसे गेहूं के इन्ते बड़े उत्पादक देश ने अपने घर में खाद्यान्न संकट ना हो इससे बचने के लिए गेहूं के निर्यात को रोक दिया है और भारत जैसा देश जिसकी आधी से अधिक आबादी गरीबी की मार झेल रही है वहां इसे सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है | अजीब विडंबना है |
सरकार ने कोर्ट को तो अपनी नीतियों में दखल देना से तो मना कर दिया पर अब देखना यह है कि सरकार कैसे उस जनता का पेट भरने के लिया अपनी निर्धारित नीतियों में कितनी कारगर होती है |
मंगलवार, 17 अगस्त 2010
एक शहरी आम लड़की
मैं कनिका हूॅ । आपने मध्यम वर्ग का नाम तो सुना ही होगा | आप जानतें हैं कि उसके भी दो प्रकार होतें हैं एक "अप्पर मिडल क्लास" और "लोअर मिडल क्लास "| हाँ मैं दूसरी श्रेणी से हूँ |कल हाइड्रोजन गैस वाला गुब्बारा देखा तो सोचा कि मैं भी अपनी इच्छाएं पूरी कर इसी की तरह स्वच्छंद आकाश में विचरण करूं । एक ‘शहरी आम लड़की की यही तो इच्छा होती है। वो करना बहुत कुछ चाहती है, पर कर कुछ नहीं पाती है। एक तरफ तो उसकी इच्छाएं फैशनेबल आकार लेना चाहती हैं वहीं दूसरी तरफ पैसों की कमी ज़रूरतों को भी पूरा नहीं होने देती।जब ये शहरी आम लड़की स्नातक पास कर लेती है तो उसके लिए बिना कहे दो विकल्प रखे जाते हैं या तो वह शादी करे या नौकरी | क्योंकि यह शहरी आम लड़की अपनी इच्छाओं को पूरा करना चाहती है इसलिए नौकरी के क्षेत्र में आ जाती है इससे दो फायदें हैं एक तो कुछ पैसे आ जाएँगे दूसरा शादी से भी थोडा टाइम शादी से भी बच जाएँगे | वैसे ये शहरी लड़की वो है जिसके माँ - बाप उस पर और पैसे खर्च नहीं करना चाहते या यूँ कहें कि उसकी शादी के लिए पैसे बचाना चाहतें हैं | ये आम लड़की वो है जो बसों के धक्के खाती है , जो चलती फिरती नज़रों का "सिर्फ" शिकार बनती है , जो पदना चाहती है लेकिन कहीं उसकी अगले दो सालों में शादी ना हो जाये इसलिए नौकरी करती है | ये वो लड़की है घर में देरी से आने से डरती है क्योंकि उसके घर वाले उसकी बहुत परवाह करते हैं | कहते हैं कि लड़की कि इच्छा एक पानी का बुलबुला है जो बनते ही फूट जाता है लेकिन मुझे लगता है कि यह इच्छा अथाह समुद्र के सामान होती है जिसे कभी किनारा नहीं मिलता | ये वो लड़की है जो इस तरह पदाई - लिखाई जाती है जिससे कि वो एक "मैरिज मैटेरिअल" बन जाती है |ये वो लड़की है जो करना बहुत कुछ चाहती है पर कर कुछ नहीं पाती है| ये लिखते समय मुझे बस एक ही विज्ञापन याद आता है "वाय ब्वायज शुड हैव ऑल द फन" |
शनिवार, 14 अगस्त 2010
लो आ गया पंद्रह अगस्त
इस वर्ष पन्द्रह अगस्त पर हम भारत की स्वतंत्रता की ६3 वी वर्षगांठ मन रहे हैं | हम सब के लिए यह एक महतवपूर्ण दिन है लेकिन फिर भी देखा जाये तो यह सभी के लिए एक राष्ट्रीय छुट्टी है जो सबके लिए लाग अलग कारणों से महतवपूर्ण है जैसे एक बच्चे के लिए इस दिन का मतलब पतंग उड़ाना और मस्ती करना हो सकता है लेकिन इस बार १५ अगस्त कुछ खास मज़ेदार नही है| आप सोच रहे होगे की क्यों नहीं है वो इसलिए कि इस बार इस राष्ट्रीय छुट्टी को सन्डे वाले दिन जो आई है| आज कि इस व्यस्त ज़िन्दगी में भारतीयों के लिए ये छुट्टी बहुत मायने रखती है क्योंकि वो इस दिन आराम कर सकते हैं , मस्ती मार सकते हैं , आई बो कटा का खेल , खेल सकते हैं ,अपने मित्रो सम्बन्धियों से मिल सकते हैं लेकिन इस बार मजा थोडा किरकिरा हो गया क्योकि एक छुट्टी बेकार गई | भारतीय जनता इस दिन पर चिंतन करना भूल जाती है | अपने देश का चिंतन | वो नहीं सोचती कि जो इन्ते वर्षों में हमने क्या खोया और क्या पाया | जो ओस देश का शिक्षित वर्ग है उनसे अपेक्षा है कि वें इस दिन को सिर्फ एक छुट्टी न समझे बल्कि देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझें और कदम उठाएं | एक तरफ से देखा जाये तो ये रोज़गार का भी अच्छा साधन है इन दिनों हमारे तिरंगे झंडे हर जगह दिखाई दे जाता है जिससे सीजनल एम्प्लौय्मेंट बड जाती है | अभिप्राय ये है कि आज स्वतंत्रता दिवस से किसी को कुछ लेना देना नही है बल्कि एक मौका है किसी के लिए मस्ती का यो किसी के लिए रोज़गार का |
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